बिलासपुर: हाई कोर्ट में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संविदा कर्मचारियों के रूप में काम करने वाली महिलाओं को भी मातृत्व अवकाश स्वीकृत करने से इन्कार नहीं किया जा सकता। मातृत्व अवकाश का वेतन उन्हें मिलना चाहिए।

कोर्ट के अनुसार, मातृत्व अवकाश का उद्देश्य मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है। संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे का पूर्ण विकास का अधिकार भी सम्मिलित है।

संवैधानिक अधिकार, किसी की इच्छा पर निर्भर नहीं
कोर्ट ने कहा कि मातृत्व और शिशु की गरिमा के अधिकार को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। इसे प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा पर निर्भर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा मातृत्व अवकाश वेतन की मांग पर नियमानुसार तीन माह के माह के भीतर निर्णय लिया जाए।

याचिकाकर्ता राखी वर्मा, जिला अस्पताल कबीरधाम में स्टाफ नर्स के रूप में संविदा पर कार्यरत है। उन्होंने 16 जनवरी 2024 से 16 जुलाई 2024 तक मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था। 21 जनवरी 2024 को एक कन्या को जन्म दिया और 14 जुलाई 2024 को पुन: ड्यूटी ज्वाइन की।

इसके बावजूद उन्हें मातृत्व अवधि का वेतन नहीं दिया गया। अब राज्य सरकार को दिए निर्देश हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सिविल सेवा अवकाश नियम 2010 के नियम 38 एवं अन्य लागू दिशा-निर्देशों के अनुसार शासन को विचार करने और आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर इस संबंध में उपयुक्त निर्णय पारित करने निर्देश भी दिए हैं।

इस बीच, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हाल ही में कोर्ट ने सरकारी जमीनों को बचाने को लेकर राजस्व के खराब प्रदर्शन होने की टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा- सरकारी जमीनों से लेकर माफी की जमीनों के केसों को लेकर शासन का कमजोर पक्ष या फाइलें गुम होने का मामला नया नहीं है। यह खेल लगातार चलता रहता है।

वर्तमान में यहां हालात यह है कि सरकारी जमीनों और माफी की बेशकीमती जमीनों की फाइलें ही सरकारी अधिवक्ताओं तक नहीं पहुंच रहीं हैं। इसको लेकर अधिकारियो के दखल के बाद भी फर्क नहीं पड़ रहा है।

फूलबाग के रामजानकी मंदिर की जमीन के मामले में उपायुक्त राजस्व से लेकर अपर कलेक्टर तक ने फाइल की खोजबीन शुरू कराई है लेकिन फाइल अभी तक संबंधित शासकीय अधिवक्ता को नहीं मिली है।