भोपाल । प्रदेश सरकार द्वारा चुंगी क्षतिपूर्ति में कटौती का असर अधिकारियों-कर्मचारियों पर पड़ रहा है। नगरीय निकायों में वेतन बांटने में पसीने छूट रहे हैं। करीब 250 से अधिक नगरीय निकाय तो ऐसे हैं जहां कई महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। दरअसल, पिछले कुछ सालों से प्रदेश के नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति खराब चल रही है। इस कारण कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ रहे हैं।
प्रदेश के नगरीय निकायों की माली हालात दिन पर दिन खराब होती जा रही है। दरअसल, तमाम कोशिशों के बावजूद ये अपनी राजस्व का कोई ठोस तरीका नहीं निकाल पा रहे हैं। राज्य में कुल 418 निकाय हैं। वेतन संकट बने रहने का मुख्य कारण निकायों की बढ़ती संख्या, उन्हें मिलने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति राशि में कटौती और मुद्रण शुल्क में कमी के साथ निकायों में खर्च ज्यादा और वसूली कम होना है। इससे कर्मचारियों को 6-6 महीने से वेतन नहीं मिल रहा है। घाटे से उबरने के लिए निकाय अध्यक्षों ने सरकार से विशेष पैकेज और चुंगी क्षतिपूर्ति के साथ स्टांप ड्यूटी राशि बढ़ाने की मांग की है। गौरतलब है कि वर्ष 2019 तक निकायों के सीमा क्षेत्र में जो निजी संपत्ति खरीदी और बेची जाती थी, उसमें लगने वाले स्टांप ड्यूटी का दो प्रतिशत निकायों को मिलता था। वर्ष 2020 में सरकार ने यह ड्यूटी घटाकर एक प्रतिशत कर दी। इससे निकायों को स्टांप ड्यूटी से आय आधी हो गई।


इस कारण निकायों की आर्थिक स्थिति हुई खराब


प्रदेश के नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कई कारण हैं। मप्र में चुंगी क्षतिपूर्ति का निर्धारण वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार सरकार प्रतिवर्ष करती है। प्रदेश में 378 नगरीय निकायों को वर्ष 2019 तक 324 करोड़ रुपए आवंटित होते थे। वर्ष 2020 में घटाकर 300 करोड़ रुपए कर दिए गए। सरकार ने व्यवस्था की थी कि प्रति वर्ष चुंगी क्षतिपूर्ति की दस फीसदी राशि बढ़ाई जाएगी। पिछले 14 वर्षों में निकायों की संख्या 418 हो गई है, फिर भी चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि नहीं बढ़ी। यांत्रिकी प्रकोष्ठ के नाम पर भी 60 करोड़ की कटौती हो गई। निकायों की एक बड़ी कमाई का जरिया तहबाजारी था। सरकार ने विधानसभा चुनाव से तीन माह पहले तहबाजारी बंद कर दी। बाद में यह भी निर्णय लिया गया कि तहबाजारी साल में एक बार ली जाएगी। आदेश जारी नहीं होने से कारोबारी अब न तो हर दिन तहबाजारी दे रहे हैं और न ही साल में एक बार दे रहे हैं। इससे भोपाल, इंदौर निकाय को साल भर में 50 से 60 करोड़ हर साल और छोटे निकायों को दो से 30 करोड़ रुपए तक मिलते थे।


निकायों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब


नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। कुछ इसी तरीके की स्थिति ग्राम पंचायतों की भी बनी हुई है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों से जो राशि नगरीय निकायों और ग्राम पंचायत के लिए उपलब्ध कराती है। उस राशि पर राज्य सरकार का नियंत्रण और राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा नियंत्रण और निर्णय लिए जाने के कारण पंचायती निकाय एवं नगरी निकाय संस्था लगातार कमजोर होती चली जा रही हैं। स्थानीय निकायों के खर्च और नगरीय निकाय के निर्णय लेने पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं। मप्र जैसे राज्य में जब चुंगी खत्म की गई थी, उस समय नगरीय निकायों को आर्थिक क्षतिपूर्ति दिए जाने का एक सिस्टम बनाया गया था। सीएमओ नपा ब्यावरा रईस खान का कहना है कि हमारे यहां पिछले तीन माह से कर्मचारियों को वेतन लेट मिल रहा है। इसकी मुख्य वजह है कि सरकार ने पिछले वर्ष एक करोड़ 65 लाख रुपए कटोत्रा कर लिया था। इससे कर्मचारियों को देरी से वेतन मिल रहा है। इस बात की जानकारी सरकार को भी दी गई है। अध्यक्ष मध्य प्रदेश नगर निगम, नगर पालिका कर्मचारी संघ सुरेन्द्र सोलंकी का कहना है कि राजगढ़, आगर सहित करीब ढाई सौ निकायों में कर्मचारियों के वेतन तीन से 6 माह तक लेट मिल रहा है। निकायों को स्टांप ड्यूटी सहित अन्य उनके हक का भी पैसा नहीं मिला रहा है। नई नगर पंचायतों के बनने आर्थिक भार बढ़ रहा है, वहीं कंपनसेशन की राशि कम हो रही है। नगर पालिका अध्यक्ष परासिया जिला छिंदवाड़ा विनोद मालवीय का कहना है कि प्रदेश के विभिन्न नगर परिषद और नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति लगातार खराब हो रही है। ऐसे में सैकड़ों कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ रहे हैं। चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि भी पर्याप्त नहीं मिल रही है। निकायों को बंद होने से बचाने के लिए राज्य सरकार से विशेष पैकेज देने की लगातार मांग की जा रही है।